-राम मनोहर
कांग्रेस पार्टी में नेताओं की बेरूखी और एकांकी शासन की प्रथा से परेशान कांग्रेस अब अपनी दशा पर चिंतन और मंथन कर रही है। हालांकि इस चिंतन से कांग्रेस में पनप रही चिंता दूर हो पाएगी कि नहीं यह तो भविष्य तय करेगा। फिलहाल तो मंथन शिविर के दौरान ही कांग्रेस के दिग्गज नेता ही कांग्रेस की कार्यप्रणाली और मंथन शिविर पर सवाल खड़े करने लगे है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस अपने भविष्य को लेकर फिक्रमंद है या फिर गांधी परिवार के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए। कांग्रेस पार्टी इस मंथन का ढोंग रच रही है। मंथन शिविर में जो निर्णय लिए गए उसमें गांधी परिवार को दायरों से बाहर रखना इस बात का उदाहरण है। यही कारण है कि अब कांग्रेस पार्टी के भरोसेमंद और कद्दावर नेताओं ने पार्टी छोडऩे का मन बना लिया है। शुक्रवार को भी पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने पार्टी की नीतियों से तंग आकर टाटा कहने में ही अपनी भलाई समझी। जाते-जाते उन्होने शीर्ष नेतृत्व पर कई सवाल खड़े किए तो नेताओं की मंशा पर भी सवाल दागे।
कांग्रेस पार्टी को एक बड़ा झटका तब लगा जब उदयपुर में कांग्रेस नेता मंथन शिविर में कंाग्रेस को उबारने के लिए मंथन में जुटे थे। तब पंजाब कांग्रेस के दिग्गज नेता और गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले सुनील जाखड़ ने कांग्रेस पार्टी छोडऩे का ऐलान कर दिया। सुनील जाखड़ ने सोनिया गांधी से फेसबुक लाईव के माध्यम से कहा कि राजनीति सारे देश में कर लीजिएगा, पंजाब को बक्श दीजिए। पंजाब का बेड़ा गर्क दिल्ली में बैठे उन नेताओं ने कर दिया, जिनको पंजाब के बारे में कुछ पता नहीं है। सुनील जाखड़ ने फेसबुक लाइव करके कांग्रेस नेताओं को खरी-खोटी सुनाई। उन्होंने राहुल गांधी को कहा कि व्यक्तियों की पहचान करना नहीं आता कौन अपना कौन पराया।
पहला मौका नही जब कांग्रेस पार्टी के किसी दिग्गज नेता ने शीर्ष नेतृत्व पर प्रश्रचिन्ह खड़े किए हो। इससे पूर्व में भी अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व (गांधी परिवार) की काबलियत सर सवाल खड़े किए। जिसमें मध्यप्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और उत्तरप्रदेश में नेताओं द्वारा प्रश्न खड़े किए है। जबकि गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल सहित ग्रेट 20 नेताओं ने तो नेतृत्व बदलने की मांग करने के लिए अलग बंद कमरे में बैठके भी की। बाबजूद इसके गांधी परिवार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। यही राहुल गांधी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ा तो पुन: सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बना दिया गया। जबकि इससे पूर्व उन्होने स्वयं स्वास्थ्य कारणों के चलते अध्यक्ष पद छोड़ते हुए गांधी परिवार के युवराज राहुल गांधी को कमान सौंपी थी।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी पार्टी छोडऩे के कारण भले उजागर नहीं किए थे। लेकिन अंदर खाने से जो खबरे सामने आई थी, उससे स्पष्ट था कि मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ और सिंधिया के बीच सबकुछ ठीक नहीं था। सिंधिया जहां अध्यक्ष पद के लिए अड़े थे तो वहीं कमलनाथ किसी भी सूरत में अध्यक्ष पद सिंधिया को देना नहीं चाह रहे थे। लड़ाई गांधी परिवार तक पहुंची तो राहुल गांधी ने भी कमलनाथ का साथ दिया जबकि ङ्क्षसंधिया को मिलने तक का समय नहीं दिया। जिसके कारण रूष्ठ हो कर सिंधिया ने भाजपा में अपने 22 विधायकों के साथ अपनी आस्था जताई थी।
नवजोत सिद्धु और अमरिन्द्र सिंह में चल रही खींचतान को विराम देने में विफल रही कांग्रेस पार्टी को पंजाब की सत्ता से हाथ धोना पड़े। जहां सिद्धु अमरिंदर सिंह पर आरोप मड़ते रहे, वहीं कैप्टन सिद्धु को पंजाब कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष बनाने से रूष्ठ थे। दोनों की आपसी खींचतान को थामने में विफल रही कांग्रेस पार्टी ने अपनी गलतियों को ढकने का प्रयास किया। यही कारण रहा कि ठीक विधानसभा चुनाव तीन महीने से पूर्व पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से पार्टी आलाकमान ने स्तीफा मांग लिया। जिसके बाद कैप्टन ने स्तीफा दे कर कांग्रेस पार्टी को भी अलबिदा कह दिया। इसके बाद पंजाब में एकतरफा राज करने वाली कांग्रेस की उल्टी गिनती प्रारंभ हो गई। जहां कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता नवजोत सिद्धु को हार झेलनी पड़ी तो आप पार्टी ने पहली बार पंजाब में दो तिहाई बहुमत हांसिल कर लिया।
पंजाब कांग्रेस में सुनील जाखड़ का बड़ा कद माना जाता था। वे प्रथम पंक्ति के नेता कहे जाते रहे है। जाट समुदाय के दिग्गज नेता ने पंजाब में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व भी किया है। वे बलराम जाखड़ के पुत्र है, स्वर्ग बलराम जाखड़ कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे है और मध्यप्रदेश के राज्यपाल भी रहे। बतादें कि सुनील जाखड़ को कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा सीएम पद छोड़े के बाद पंजाब का भावी सीएम माना जा रहा था। लेकिन नवजोत सिद्धु से कड़बाहट के चलते उनकी आलाकमान ने ताजपोशी न करते हुए। चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब की कमान सौंप दी। तब से ही सुनील जाखड़ आलाकमान और कांग्रेस से रूष्ट चल रहे थे। लिहाजा उनके सोशल मीडिया पर पार्टी विरोधी बयान भी सामने आए। हाल ही में मंथन शिविर की मंशा पर सवाल खड़े किए थे। जिसके बाद आलाकमान ने उन्हे कारण बताओं नोटिस दिया था साथ ही पार्टी के सभी अहम पदों से बरर्खास्त कर दिया गया था। जिसके कारण सुनील जाखड़ आहत थे और उन्होने अंतत: पार्टी के प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया।
सुनील जाखड़ ने कहा कि मैंने सोनिया गांधी का भाषण सुना। बड़ा भावुक भाषण था। उन्होंने कहा कि असाधारण स्थिति को असाधारण समाधान की जरूरत होती है। कांग्रेस का चिंतन शिविर औपचारिकता पूरी करने से ज्यादा कुछ नहीं है। जब पार्टी का अस्तित्व खतरे में है, उसको बचाने का समय है तब हम ऐसे व्यवहार कर रहे हैं जैसे कांग्रेस के कंधों पर देश का दायित्व है। चिंतन शिविर में 6 कमेटियां बनाई गई हैं। कांग्रेस आज एक मुख्य विपक्षी पार्टी है और हमारा फर्ज है कि इन विषयों पर हमारी एक राय हो। कांग्रेस नेताओं की नीयत ही नहीं है कि पार्टी को बचाया जाए। उदयपुर में हो रहे चिंतन शिविर का नाम चिंता शिविर होना चाहिए।

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