भोपाल। प्राकृतिक संसाधनों के साथ वैज्ञानिक सोच तथा तकनीक से खेती में दिन-दूनी रात – चौगुनी तरक्की होती है। यह कहना है सीहोर जिले के बुदनी ब्लाक के गांव खोहा के किसान पवन चौहान का। कभी 8-10 क्विंटल एकड़ उत्पादन लेने वाले किसान आज 40 से 50 क्विंटल उत्पादन ले रहे हैं। किसान पवन कुमार ने बताया कि पूर्व में धान की रोपाई विधि से खेती की जाती थी उसमें भी अपना पुराना बीज बोता था जिससे कम उत्पादन एवं अधिक लागत आती थी।
आत्मा परियोजना अंतर्गत विगत खरीफ फसल में धान की उन्नत किस्म यू.एस. 382 कृषि विभाग द्वारा नि:शुल्क प्रदान की गई। साथ ही कृषि विभाग ने बीटीएम द्वारा धान की डीएसआर बुबाई विधि से बुआई कराई गई एवं समय-समय पर फसल की अवस्थानुसार तकनीकी मार्गदर्शन दिया गया। लीफ कलर चार्ट एवं नील हरित शैवाल का उपयोग भी कराया गया। खेत में लम्बे समय तक नमी बनी रही, जिसके फलस्वरूप धान के खेत में अतिरिक्त पानी देने की जरूरत नहीं पड़ी। वे बताते है कि जैविक खाद के रूप में नील हरित शैवाल के उपयोग के फलस्वरूप यूरिया खाद की भी ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ी जिससे धान की डीएसआर बुआई विधि में रोपाई विधि की अपेक्षा शुद्ध लाभ अधिक प्राप्त हुआ।