भोपाल। मध्यप्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव को लेकर चल रही पंचायत में नया मोड़ आता दिख रहा है। प्रदेश में निकाय और पंचायत चुनाव को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। जिसमें सरकार की संशोधित याचिका को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकार कर लिया है। आपको बता दें बीती रात सरकार द्वारा संधोधित याचिका दायर की गई थी। जिसमें ओबीसी आरक्षण मामले को लेकर ये याचिका दायर की गई थी। जिस पर 17 मई को सुनवाई होगी।
यदि मध्यप्रदेश सरकार की रिब्यू याचिका का परिणाम पूर्वत रहा तो प्रदेश के नगरीय निकायों में महापौर व अध्यक्ष के प्रत्यक्ष चुनाव वाला अध्यादेश निष्प्रभावी हो गया है। साथ ही अप्रत्यक्ष चुनाव वाला विधेयक फिर लागू हो गया है, यानी ताजा परिस्थितियों में चुनाव हुए तो पार्षद ही तय करेंगे कि कौन अध्यक्ष और महापौर होगा। ऐसे में अब पार्षदों की पूछ परख तो बढ़ेगी ही चुनाव में धन और बाहुबल का दबदबा भी देखने को मिलेगा। हालांकि अधिकांश अध्यक्ष पद के दावेदार प्रत्यक्ष प्रणाली (सीधे जनता द्वारा चुने जाने को) ही उचित मानते हैं।
बतादें कि कमलनाथ सरकार द्वारा नगरीय निकाय चुनाव में अध्यक्ष और महापौरों के चुनाव विधेयक को संशोधित किया था। जिसमें प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली को बदलकर अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव कराने की मंजूरी कैबीनेट की मंजूरी मिलने के बाद कानून में तब्दील हो गया था। लेकिन जैसे ही कमलनाथ सरकार सत्ता से हटी तो भाजपा ने सर्वप्रथम इस विधेयक को वापिस लेते हुए चुनाव प्रणाली पूर्वत करने का निर्णय लिया था। जिसके बाद से ही भाजपा और कांग्रेस दोनो त्रिस्तरीय चुनाव को लेकर आमने सामने है। जहां भाजपा इन चुनावों में अपनी जीत दर्ज करने के लिए ओबीसी का सहारा ले रही है। वहीं अधिकांश नगरीय निकायों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कांग्रेस पार्टी द्वारा अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का कदम उठाया गया बा। अब दोनो पार्टियों की प्रतिष्ठा का सवाल बने त्रिस्तरीय चुनाव सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गए है। बतादें कि बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में बिना ओबीसी आरक्षण के ही चुनाव कराने के निर्देश राज्य सरकार को दिए थे। जिसके बाद गुरूवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधिविशेषज्ञों से सलाह लेकर रिब्यू पिटीशन दायर की है। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर कर लिया है और इसकी सुनवाई आगामी 17 मई को होगी।