राकेश दुबे
‘अग्निपथ’ योजना को भाजपा और मोदी सरकार सशस्त्र बलों की गेम-चेंजर और युवा शक्ति के जरिये सेना की ताकत बढ़ाने वाली बताती रही है, लेकिन इस योजना के दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर सवाल गाहे-बगाहे उठते रहे हैं। यद्यपि जून 2022 में शुरू की गई अग्निपथ योजना फिलहाल गहन विभागीय जांच के अधीन है, लेकिन विशेषकर, विपक्ष को यह मुद्दा आम चुनाव के दौरान सर्वाधिक रास आया है।
जिन इलाकों से ज्यादा युवा सेना में आते रहे हैं उन इलाकों में कांग्रेस ने सरकार पर तीखे हमले इस योजना को लेकर किये हैं। इस योजना के अंतर्गत सिर्फ पच्चीस फीसदी अग्निवीरों की सेवाओं को बरकरार रखने का प्रावधान है। यही वजह है कि चार साल का कार्यकाल पूरा होने पर सेवा से बाहर होने वाले अग्निवीरों का मुद्दा राजनीतिक हलकों में विवादास्पद रहा है। यही वजह है कि कांग्रेस ने अपने आम चुनाव 2024 के घोषणापत्र में वायदा किया है कि वह सत्ता में आई तो इस योजना को खत्म कर देगी।
और सेना, नौसेना व वायुसेना द्वारा अपनाई जाने वाली पुरानी भर्ती प्रक्रिया को पुन: लागू करेगी। जबकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यह कहा था कि सरकार आवश्यकता पड़ने पर योजना में कोई भी बदलाव लाने को लिये तैयार है। इस बयान के कुछ सप्ताह बाद एक प्रमुख समाचार पत्र ने खबर दी है कि सेना भर्ती प्रक्रिया में अग्निवीर योजना के प्रभाव का आकलन करने के लिये एक आंतरिक सर्वेक्षण कर रही है।
इसमें अग्निवीरों, यूनिट कमांडरों और रेजिमेंटल केंद्रों के कर्मचारियों की राय मांगी जा रही है। फिर सर्वेक्षण के निष्कर्षों के आधार पर सेना संभावित बदलावों के लिये अगली सरकार को सिफारिशें कर सकती है। केंद्र सरकार आश्वासन देती रही है कि अग्निवीरों के रूप में शामिल किये गए युवाओं के भविष्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्हें सरकारी व निजी क्षेत्रों में समायोजित करने में वरीयता देने तथा स्वरोजगार के लिये प्रोत्साहित करने की भी बात होती रही है।
एक हकीकत यह भी है कि सरकार का ये वायदा 75 प्रतिशत रंगरूटों की नौकरी की संभावनाओं के बारे में आशंकाओं को दूर करने में विफल रहा है। कहा जा रहा है कि सेवा समाप्ति के बाद इन सेवानिवृत्त अग्निवीरों की रोजगार सुरक्षा दांव पर होगी।
यही वजह है कि विपक्षी राजनीतिक दल, खासकर कांग्रेस इस नाराजगी का फायदा उठा रही है। कांग्रेस ने हरियाणा में इसे चुनावी मुद्दा बनाने की भरसक कोशिश की है। निस्संदेह, मौजूदा परिदृश्य में अग्निपथ की गहन समीक्षा आवश्यक है। सैनिकों की कार्यशील आयु कम कर एक सैन्य बल तैयार करने के मकसद को लेकर कोई किंतु-परंतु नहीं है।
इस योजना के दूरगामी प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। देश में व्यापक बेरोजगारी व अल्प रोजगार की स्थिति को ध्यान में रखते हुए निराश युवाओं के पुनर्वास के लिये सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में समायोजन के लिये दृढ़ प्रतिबद्धता की आवश्यकता होगी।
वैसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े गंभीर मुद्दों को राजनीति का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए। साथ ही सरकारों का भी दायित्व है कि सेना की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए प्रयोगों से बचा जाए। वैश्विक स्तर पर कई विकसित देशों में ऐसे प्रयोग हुए हैं और सफल भी रहे हैं। भारत जैसे देश जहां व्यापक बेरोजगारी है और पीढ़ी-दर-पीढ़ी सेना में भर्ती होने की गौरवशाली परंपरा रही है, उनकी भावनाओं से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता।
युवाओं के लिये सेना की नौकरी जीवन-यापन ही नहीं,विवाह का भी आधार होता है। जब तक उनकी गृहस्थी बसेगी, तब तक उनके रिटायर होने की स्थिति बनने लगेगी। यह असहज करने वाली स्थिति है।
सेना के जोखिमों को देखते हुए जवानों की सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा के प्रति स्थायित्व होना जरूरी है। निश्चित रूप से देश की सुरक्षा और अग्निवीरों के भविष्य में सामंजस्य बेहद जरूरी है। अन्यथा राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे लक्ष्य में भविष्य की अनिश्चितता जवानों की कार्यक्षमता को भी प्रभावित कर सकती है।