राकेश दुबे
हमेशा की तरह प्रधानमंत्री मोदी ने एक और चुनावी गारंटी दी है कि अब 70 वर्ष की उम्र या उससे अधिक के प्रत्येक नागरिक को ‘आयुष्मान’योजना का लाभ मिलेगा। वे 5 लाख रुपए तक का इलाज मुफ्त ही करा सकेंगे,इसमें थोड़ी सी कसर है जो वरिष्ठ नागरिकों को खटक रही है ।
प्रधानमंत्री की भावना सचमुच वरिष्ठ नागरिकों को स्वास्थ्य कवर देने की थी, तो इस आयु-वर्ग के दायरे में 65 साल के वरिष्ठ नागरिक भी रखे जा सकते थे, क्योंकि इस उम्र तक बीमारियां पकने लगती हैं और इलाज की सख्त जरूरत होती है। इस सूची में मधुमेह, रक्तचाप, हृदय रोग, कैंसर, किडनी, प्रोस्टेट से जुड़ी बीमारियां रखी जा सकती हैं, जो उम्र के साथ-साथ बढऩे लगती हैं। यदि प्रधानमंत्री ने ऐसा किया होता, तो न केवल देश के बुजुर्ग उन्हें ढेरों आशीर्वाद देते, बल्कि सकल जीवन प्रत्याशा भी बढ़ती।
बूढ़ों को स्वास्थ्य कवर देना बेहद गंभीर और जरूरी मुद्दा है, क्योंकि स्वास्थ्य बीमा कंपनियां वरिष्ठ नागरिकों को कवर देने से कन्नी काटती हैं या साफ इंकार कर देती हैं। अधिकतर निजी कंपनियों के बीमे की किस्त बेहद महंगी होती है, जिसे बिना पेंशन वाले बुजुर्ग वहन नहीं कर सकते। जो सरकारी सेवाओं में रहे हैं, उनके लिए सीजीएचएस जैसी सुविधाएं ताउम्र उपलब्ध हैं। ऐसे बहुत कम फीसदी लोग हैं। आम आदमी के लिए बीमा कंपनियों की शर्तें इतनी महीन छापी जाती हैं कि उन्हें पढऩा असंभव होता है, लिहाजा बीमा लेने वालों को एजेंट के कथनों पर ही भरोसा करना पड़ता है।
सरकारी डाटा ही खुलासा करता है कि मात्र 6 प्रतिशत आबादी उन वरिष्ठ नागरिकों की है, जिनके पास अपना स्वास्थ्य बीमा कवर है, जबकि भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडाई) बुजुर्गों की भागीदारी को प्रोत्साहित करता रहा है। यह एक संवैधानिक निकाय है, जिसका गठन संसद में पारित बिल के जरिए किया गया था, ताकि बीमा बाजार पर निगाह रखी जा सके। इसके बावजूद देश और समाज के सबसे संवेदनशील समूह को बीमे के फायदों और जरूरत से बाहर रखा गया है, क्योंकि बीमे की किस्त वाकई बेहद महंगी है।
प्रधानमंत्री की गारंटी ‘मास्टर स्ट्रोक’ साबित हो सकती थी। इरडाई का ही डाटा है कि 144 करोड़ के देश में 55 करोड़ के पास ही स्वास्थ्य कवर है। औसतन 100 में से 54 कवर सरकार द्वारा प्रायोजित होते हैं । किश्त के तौर पर कमाए गए प्रति 100 रुपए में से 91 रुपए व्यक्तिगत और समूह बीमा पॉलिसी से आते हैं। ‘पॉलिसी बाजार’ नामक बीमा कंपनी के सर्वेक्षण के मुताबिक, देश में 96 प्रतिशत लोग स्वास्थ्य बीमा जानते हैं, लेकिन 43 प्रतिशत ने ही पॉलिसी ले रखी है।
औसतन 3 में से 2 लोग महसूस करते हैं कि बीमा किश्त बेहद महंगी है। नीतियां और शर्तें बेहद पेचीदा हैं, लूट भी लेती हैं, भुगतान की शर्तें बिल्कुल अस्पष्ट हैं और कई बीमारियों को कवरेज की सूची से बाहर रखा गया है और बीमाधारक को यह स्पष्ट नहीं किया जाता। यह धोखाधड़ी अधिकतर कंपनियां कर रही हैं। दरअसल स्वास्थ्य बीमा का बाजार बड़ा प्रतियोगी है। बीते 2023 के अंत में 29 कंपनियां ऐसी थीं, जो स्वास्थ्य की नीतियां और शर्तें तय कर रही थीं। गैर-जीवन बीमा बाजार का यह सबसे बड़ा हिस्सा, भाग है। बेशक यह बीमा-क्षेत्र बढ़ भी रहा है, क्योंकि लोग स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सचेत होने लगे हैं।
2023 में ही स्वास्थ्य बीमा की किस्त 21 प्रतिशत बढ़ाई गई, जो गैर-जीवन बीमा क्षेत्र की सकल वृद्धि से 7 प्रतिशत अधिक थी। भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) जीवन बीमा के बाजार का सिरमौर अब भी है। अब भी उसमें भारत सरकार की हिस्सेदारी सर्वाधिक है। वह स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्र में भी उतरने और धमक मचाने पर विचार कर रही है। यह कंपनी ‘मील पत्थर’ स्थापित करने में भी सक्षम है। एलआईसी का सालाना मुनाफा 40,000 करोड़ रुपए से अधिक का है, लिहाजा उसके शेयर की कीमत, बीते अक्तूबर से ही, दोगुनी हो गई है।
बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आम बीमा उपभोक्ता के लिए एलआईसी के संभावित प्रयास के मायने और फायदे क्या होंगे? क्या बुजुर्गों की उपेक्षित जमात को रियायती किस्त पर स्वास्थ्य कवर मिल सकेगा? या प्रधानमंत्री मोदी ही अपने तीसरे कार्यकाल में कोई सामाजिक पहल करेंगे? देश में बनने वाली नई सरकार को समझ लेना चाहिए कि अगर उसे बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद चाहिए, तो इस योजना का लाभ 65 वर्ष आयु वाले वरिष्ठ नागरिकों को देना होगा।