वैध हो जाने की वृत्ति बढ़ाती, अवैध करने की प्रवृत्ति

By Tatpar Patrika May 23, 2024

सरयूसुत मिश्रा

क्या ऐसा कहा जा सकता है, कि अवैध काम करने की प्रवृत्ति गवर्नेंस ही बढ़ाती है. बहुमत की जुगाड़ में अवैध को भी वैध बनाने की राजनीतिक सोच अंततः किसको फायदा और किसको नुकसान पहुंचती है. रोटी, कपड़ा और मकान हर इंसान का लक्ष्य और संघर्ष है. सब मकान बनाने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं.  क्रय शक्ति के अभाव में मकान का सपना पूरा करने के लिए इंसान ऐसे कॉलोनाइजर के कुचक्र में फंस जाता है, कि अवैध कॉलोनी में भी रहने के लिए मजबूर हो जाता है. 

कॉलोनाइजर बिना वैधानिक प्रक्रिया पूरी किए और बुनियादी सुविधाओं का विस्तार किए कॉलोनियां बनाकर लोगों को ठग लेते हैं. रहवासी पैसे खर्च करके भी कष्टपूर्ण जीवन गुजारता है. यहीं से राजनीति शुरू होती है. अवैध कॉलोनी के निवासियों को राहत देने के नाम पर अवैध कॉलोनी को वैध बनाने का फरमान शुरु होता है. यह केवल मध्य प्रदेश का विषय नहीं है, लगभग पूरे देश में ऐसे ही हालात हैं. 

मध्य प्रदेश में तो पिछले विधानसभा चुनाव के पहले अवैध कलानियों के नियमितीकरण का कानून बनाया गया. नियमितीकरण की प्रक्रिया भी शुरु की गई, लेकिन बीच में रुक गई. नई सरकार के गठन के बाद ऐसी सुगबुगाहट शुरू हुई है, कि अवैध कॉलोनी को वैध नहीं बनाया जाएगा, बल्कि अवैध काम करने वाले कॉलोनाइजर को दंडित किया जाएगा।

मुख्यमंत्री मोहन यादव अगर अवैध कॉलोनियों के मामले में ऐसा रुख अपना रहे हैं, तो निश्चित रूप से शहरों के सुनियोजित विकास, बेहतर बुनियादी सुविधाओं और बेहतर पर्यावरण बनाने की दिशा में यह बहुत बड़ा कदम होगा. गवर्नेंस की यह शैली केवल एक मामले में प्रभावकारी नहीं रहेगी, बल्कि हर सेक्टर में अवैध काम करके मोटी रकम कमाने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी. गलत काम करने वाला दंडित होगा. इसका भय ऐसी ताकतों को अवैध काम करने से रोकेगा. सिस्टम में भ्रष्टाचार भी रुकेगा. 

जिस तरह से कर्ज माफी ने सरकारों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ दी है, इसी तरह से अवैध कॉलोनी को वैध बनाकर नियमित करने के सरकारी प्रयास बेहतर शहरों के सपने को मौत के घाट उतार देंगे. शहरों में बुनियादी सुविधाओं और नागरिकों के लिए कॉलोनी विकास के कामों को राजनीति के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए. इसके लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए ही समाधान किया जाना चाहिए. पूरा सरकारी सिस्टम जिस पर गलत काम रोकने की जिम्मेदारी है, वही जाने-अनजाने गलत काम को अंजाम तक पहुंचाने का टूल बन जाता है. 

राजनीतिक कारणों से सरकारें बहुमत पाने के चक्कर में ऐसे गलत कामों को वैधता देने में भी संकोच नहीं करतीं. शहर को झुग्गी मुक्त बनाने के लिए करोड़ों रुपए की योजनाएं लागू हुई हैं.  लेकिन शहर के किसी भी कोने में झुग्गियों में कोई कमी नहीं आई है. झुग्गियों के स्थान पर पक्के मकान बनाने की योजनाओं के अंतर्गत बड़े-बड़े भवन बने. झुग्गी वालों को इसके पट्टे भी दिए गए, उस पर कब्ज़ा भी दिया गया. लेकिन झुग्गियां फिर भी कम नहीं हुईं. 

एक ही दल की सरकार में अवैध कॉलोनी को नियमित करने को लेकर दो विचार सामने आए हैं. पूर्व के मुख्यमंत्री ने अवैध कॉलोनियों के नियमितीकरण की घोषणा की थी. कानून भी बनाए थे. अब नए मुख्यमंत्री मोहन यादव इसके विपरीत अवैध कॉलोनी को नियमित करने को उचित नहीं मान रहे हैं. किसी भी अवैध काम को वैध करने का विचार कभी भी उचित नहीं हो सकता. जब तक कि नियम प्रक्रियाओं का पूरा पालन किया जाए. जिसने भी गलत काम किया है, उसे दंड ना दिया जाए. डॉ. मोहन यादव को इस बात के लिए साधुवाद दिया जाना चाहिए कि वह अस्तित्व के सिद्धांत का पालन कर रहे हैं.

अवैध कॉलोनी के निर्माण को सख्ती के साथ रोका जाना चाहिए, जो कॉलोनी पहले से बन गई हैं, उनमें बुनियादी सुविधाओं का विकास करना चाहिए. इसके लिए इन अवैध कॉलोनियों के निर्माता कॉलोनाइजर्स पर दंड निरूपित करना चाहिए. इन कॉलोनियों में जो भी रिक्त प्लॉट हों उनका सरकार अधिग्रहण करे और उनसे जो धनराशि प्राप्त हो, उससे बुनियादी विकास का काम पूरा करे.

मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री की विकास की दृष्टि सैद्धांतिक से ज्यादा प्रैक्टिकल लग रही है. जब से उन्होंने मुख्यमंत्री का पद संभाला है,  तब से कई ऐसी बाधाओं को हटाया है, जिनके कारण लोगों को बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था. राजधानी भोपाल में BRTS को हटाने का चुनौतीपूर्ण निर्णय डॉ. मोहन यादव द्वारा ही लिया जा सकता है. BRTS  खत्म होने से भोपाल के लोगों को बड़ी राहत मिली है. इसी तरीके से रजिस्ट्री के बाद नामांतरण की प्रक्रिया को भी कनेक्ट कर दिया गया है. 

अक्सर सरकारों में ऐसा देखा जाता है, कि निर्णायक स्तर पर बिना तार्किक कारणों के निजी कारणों से कई बार ऐसे फैसले लिए जाते हैं, जिनके बहुत दूरगामी दुष्प्रभाव शहर और समाज पर पड़ते हैं. फैसले लेते समय समाज की जरूरत और समाज का हित ही सर्वोपरि होना चाहिए. नीतियां और योजनाएं बनाने का आधार केवल जनहित होना चाहिए.

शहरों में कॉलोनियों का विकास और लोगों को घर उपलब्ध कराने की संपूर्ण प्रक्रिया गवर्नेंस की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है. इसके लिए कानून-कायदे बने हुए हैं, लेकिन फिर भी कॉलोनियों के निर्माण में गड़बड़ियां और सिस्टम के साथ मिलकर लोगों के साथ धोखाधड़ी एक आम बात हो गई है.

किसी भी कॉलोनी में जरूरी बुनियादी सुविधाएं पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हैं. कॉलोनाइज़र, बिल्डर मकान और प्लॉट बेचते समय जो वायदे करते हैं, वह भी अंत में पूरे नहीं होते हैं. रहवासी मजबूर बना रहता है. पिछले सालों में रहवासियों के हित में कदम तो उठाए गए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में कोई खास बदलाव नहीं आया है. 

रेरा जैसी संस्थाएं भी जमीन पर अपनी उपयोगिता साबित नहीं कर पा रही हैं. कॉलोनी निर्माण में लगी निजी और सरकारी क्षेत्र की संस्थाएं और पूरा सिस्टम अजीब सी खुशी और ग़म में जीवन गुजरता है. यह क्षेत्र सबसे ज्यादा कमाई का क्षेत्र कहा जा सकता है. इस क्षेत्र में जिसने भी शोषण किया है,अंततः वह भी शोषण का ही शिकार होता दिखाई पड़ता है.

ऐसा लगता है अवैध कॉलोनी के रहवासियों का दर्द मोहन यादव समझते हैं. इसीलिए अपनी पार्टी की पुरानी सरकार के अवैध कॉलोनी के नियमितीकरण के फैसले को बदलने का साहस कर पा रहे हैं. गवर्नेंस में इस तरह का प्रैक्टिकल अप्रोच अगर चलता रहा, तो डॉ. मोहन यादव की सरकार वर्षों से लंबित समस्याओं का समाधान करने में सफल हो सकती है. 

पीएम नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री, डॉ. मोहन यादव की अनेक बार तारीफ कर चुके हैं. BRTS तोड़कर और अवैध कॉलोनियों के मामले में फैसले को पलट कर मुख्यमंत्री ने साबित किया है, कि उनकी दृष्टि जमीन पर है. जमीन की समस्याओं पर उनकी पकड़ और नजर है. और जमीन की समस्याओं के समाधान का उनका प्रैक्टिकल नज़रिया है. अवैध कॉलोनाइजर और इसके लिए दोषी अफसर दंडित होंगे, तो मध्य प्रदेश सरकार महिमामंडित होगी.

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